10 Apr 2012

भास्कराचार्य व Calculus

दोस्तों, आज चर्चा मनीषी भास्कराचार्य व Calculus पर। शुरुआत Calculus से। आधुनिक गणित में इसकी खास अहमियत है। यह दो भागों का आपसी मिलन है: differential calculus और integral calculus। इसका खास विषय रहता है, अनन्त और अतिसूक्ष्म राशियों की मदद से गणना करना । अब बात भास्कराचार्य की। आज इस पर संदेह नहीं कि Isaac Newton और Gottfried Wilhelm Leibniz से बहुत पहले इन्होंने differential calculus का बीजारोपण किया। भास्कर विश्व के पहले गणितज्ञ माने जाते हैं, जिन्होंने अवकलन गुणांक का उदाहरण दिया। किसी ग्रह की न्यूनतम दैनिक गति को निर्धारित करने के लिए इन्होंने समय को बहुत सारे क्षणों में विभक्त किया। इस प्रकार प्रत्येक क्षण के अंत के साथ उन्होंने संबंधित ग्रह की स्थिति का संबंध स्थापित किया। इस विधि से प्राप्त ग्रह की गति को तात्कालिक गति का नाम दिया। इसके अलावा गोले का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए इन्होंने समाकलन विधि को अपनाया।
और हां, भास्कराचार्य ने ही सबसे पहले शून्य और अनंत के संबंध पर सही दृष्टि से विचार किया। वह जानते थे कि किसी भी संख्या को शून्य से भाग देने पर उत्तर अनंत आता है। उन्हें इसकी भी जानकारी थी कि अनंत में बड़ी से बड़ी या छोटी से छोटी संख्या जोडऩे या घटाने पर परिणाम अनंत ही रहेगा।


  • संदर्भ ग्रंथ:
  1. भास्कराचार्य-गुणाकर मुले
  2. गणित का इतिहास-डा. ब्रज मोहन 
  3. History of Hindu Mathematics-Bibhutibhusan Datta and Avadhesh Narayan Singh

9 Mar 2012

आर्यभटीय

आज चर्चा भारतीय विज्ञान की एक महान कृति पर। महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट की लिखी महज 118 श्लोक (मगलाचरण को छोड़कर) की पुस्तिका आर्यभटीय पर। पुस्तक चार भागों में हैं। शुरुआती दस श्लोक दशगीतिक कहताले हैं। शेष 108 आर्या छंद में हैं। इसके तीन भाग गणित, कालक्रिया और गोल हैं। पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि एक नवीन अंक पद्धति की खोज है। शब्दों के झमेले से हटकर आर्यभट्ट ने अक्षरांक-पद्धति को जन्म दिया। पुस्तक के शुरुआती एक श्लोक में इस अंक पद्धति के सारे नियम समाहित है। जबकि गणितपाद के 32 श्लोक में अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति व बीजगणित के अनेक नियम हैं। खगोल विज्ञान पर चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा कि पृथ्वी गोल है और यह अपने अक्ष पर घूमती है। इसी तरह ग्रहण पर उनका मत था कि चंद्रमा जब सूर्य का ढक लेता है तो सूर्य ग्रहण और पृथ्वी की छाया जब सूर्य को ढंक लेती है तो चंद्र ग्रहण लगता है।