8 Feb 2012

स्वधा

आज नजर एक लेख पर गई। नाम था भारत विद्या का विज्ञान। विवरण ऋग्वेद की ऋचाओं व आधुनिक विज्ञान पर था। तुलना काफी रोचक तुलना लगी, लिहाजा आपसे साझा करने का लोभ छोड़ नहीं सका। ऋचा ऋग्वेद के नासदीय सूक्त की है। आप भी देखिए...।
'...ऋषि ने कहा- सृष्टि के निर्माण के पूर्व सत और असत दोनों ही नहीं थे, न ही सूर्य, चंद्र और तारे आदि थे। आकाश या अंतरिक्ष भी नहीं था। तो क्या था? ऋषि का जवाब था- तमः आसति। अंधकार था। इस अंधकार में 'एकमात्र' वह (ब्रह्म) था। इस 'एक' की अपनी शक्ति 'स्वधा' थी।
इस 'स्वधा' पर विशेष ध्यान नहीं गया है। स्वयं को धारण करने वाली यह शक्ति है, जो एक (ब्रह्म) से अलग नहीं है। स्वधा का परिणाम है जगत की उत्पत्ति, माया, प्रकृति, परमाणु का सृजन हुआ है। वास्तव में वह एकमात्र चैतन्य ही था। स्वधा के परिणामस्वरुप न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, आइंस्टीन का सापेक्षतावाद और क्वांटम सिद्धांत और वर्तमान में वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग के स्ट्रिंग सिद्धांत का अध्ययन किया जा सकता है। इन सिद्धांतों के लिए मैं स्वधा को मूल रूप में देखता हूं। सिद्धांतों के लिए स्वधा को मूल स्त्रोत मानता हूं। इसी प्रकार मानवों पर प्रभाव डालने की ग्रहों की दृष्टि का स्त्रोत भी यह वैदिक स्वधा ही है...।'

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