1 Feb 2012

खगोलीय पिंड का रास्ता

आज चर्चा खगोलीय पिंडों के रास्ते पर, उनकी कक्षा पर...। Copernicus (1473-1543 AD) तक पाश्चात्य विज्ञान मानता था कि ग्रह और अन्य खगोलीय पिंड गोल रास्ते पर घूमते हैं। 1605 AD में Johannes Kepler ने साफ किया कि गोल नहीं, इनका रास्ता दीर्घा वृत्त जैसा है। अब देखिए, अपने धार्मिक आख्यानों में छिपे ज्ञान के भंडार को। ऋग्वेद का एक मंत्र है...। प्रथम मंडल के 164 वें सूक्त का दूसरा मंत्र...। वहां अग्निहोत्र की प्रसंशा में इसे उच्चारित किया गया है...। इसका मतलब है...
"खगोलीय पिंडों की दीर्घवृत्ताकार कक्षा स्थायी और कसावयुक्त है।"
एक बात और, यूनिवर्स का संस्कृत शब्द ब्रह्मांड है। इसका एक अर्थ है विशाल अंडा...। अर्थात खगोलीय पिंडों के पथ जैसा...।

1 comment:

  1. ये शवाल पूराना हो गया । अब शवाल ये है की कौन सी ताकत इन सब को एक नियम से घुमने पे मजबुर कर रही है वो कौन सी एनर्जी है ,,,,

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