सप्तशती में वर्णित है कि सृष्टि का निर्माण आदिशक्ति से हुआ है। एक कथा भी है इसकी...। एक बार देव-असुर संग्राम हुआ...। युद्ध में देवता पराजित हुए...। इसके बाद उन्होंने आदिशक्ति (आदि=मूल, शक्ति=ऊर्जा) की पूजा की...। इससे प्रसन्न होकर मां देवी ने अपने अंदर से बहुत सारी शक्तियां उत्पन्न की और दानवों को परास्त किया...। दानवराज बोला, आपके पास इतनी शक्ति है। कोई आश्चर्य नहीं, कि आप सर्व शक्तिशाली हैं...। मां आदिशक्ति ने उसे जवाब दिया, यह सब मेरी शक्तियां हैं...। इसके बाद सारी शक्तियों को खुद में विलीन कर मां वहां से चली गईं।
पुस्तक में यह वर्णन कहानी के फार्म में है। यहां इसका वैज्ञानिक निहितार्थ नहीं बताया गया है। आइए इसे वैज्ञानिक सिद्धांत पर परखते हैं। आदि शक्ति यानि असीम ऊर्जा का स्रोत। इसी से महाविस्फोट हुआ। 12-14 अरब वर्ष पहले। ब्रह्मांड बना, लगातार विस्तार होता हुआ। आज तक। देश-काल भी तभी अस्तित्व में आया।
एक बात और। पुराणों में शक्ति की व्याख्या नहीं है। अवर्णनीय भर कहा गया इन्हें...। लेकिन आज अगर हम व्याख्या करना चाहें, तो इसके सबसे उपयुक्त हाइजेनवर्ग होंगे। जैसा कि पहले भी हमने बताया है कि शुरुआत में विज्ञान पदार्थ और ऊर्जा को भिन्न मानता था। लेकिन आंइस्टीन व हाइजेनबर्ग ने इसे झुठलाया। आइंस्टीन ने पदार्थ को ऊर्जा में रूपांतरित किया तो हाइजेनबर्ग ने बताया कि परमाणु के नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रान की स्थिति शुद्धता से नहीं जांची जा सकती। इनकी अनुभूति दृष्टा या आब्जर्वर व उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर निर्भर करती है...।
अब बताइए, सुप्रीम एनर्जी को अवर्णनीय कहने का पौराणिक कथन वैज्ञानिक था या नहीं??
पुस्तक में यह वर्णन कहानी के फार्म में है। यहां इसका वैज्ञानिक निहितार्थ नहीं बताया गया है। आइए इसे वैज्ञानिक सिद्धांत पर परखते हैं। आदि शक्ति यानि असीम ऊर्जा का स्रोत। इसी से महाविस्फोट हुआ। 12-14 अरब वर्ष पहले। ब्रह्मांड बना, लगातार विस्तार होता हुआ। आज तक। देश-काल भी तभी अस्तित्व में आया।
एक बात और। पुराणों में शक्ति की व्याख्या नहीं है। अवर्णनीय भर कहा गया इन्हें...। लेकिन आज अगर हम व्याख्या करना चाहें, तो इसके सबसे उपयुक्त हाइजेनवर्ग होंगे। जैसा कि पहले भी हमने बताया है कि शुरुआत में विज्ञान पदार्थ और ऊर्जा को भिन्न मानता था। लेकिन आंइस्टीन व हाइजेनबर्ग ने इसे झुठलाया। आइंस्टीन ने पदार्थ को ऊर्जा में रूपांतरित किया तो हाइजेनबर्ग ने बताया कि परमाणु के नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रान की स्थिति शुद्धता से नहीं जांची जा सकती। इनकी अनुभूति दृष्टा या आब्जर्वर व उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर निर्भर करती है...।
अब बताइए, सुप्रीम एनर्जी को अवर्णनीय कहने का पौराणिक कथन वैज्ञानिक था या नहीं??
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