आज बात करते हैं सूर्य और धरती व अन्य ग्रहों के संबंध की। सबसे पहले हमारी जुबान पर नाम आता है पोलैंड के खगोल शास्त्री कोपरनिकस का। 1543 ईसवी में प्रकाशित उसकी पुस्तक 'De reveloutionibus Orbium Coelestium' का। माना गया कि सबसे पहले कोपरनिकस ने बताया कि सूर्य केंद्र में है, जबकि पृथ्वी समेत अन्य ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
लेकिन हम यहां वैदिक और उत्तर वैदिक काल के तीन श्लोक का जिक्र करेंगे। इनमें कोपरनिकस जैसी स्पष्टता तो नहीं, फिर भी उस जैसी आवाज सुनी जा सकती है....।
लेकिन हम यहां वैदिक और उत्तर वैदिक काल के तीन श्लोक का जिक्र करेंगे। इनमें कोपरनिकस जैसी स्पष्टता तो नहीं, फिर भी उस जैसी आवाज सुनी जा सकती है....।
नैवास्तमनमर्कस्य नोयदः सर्वदा सतः।सूर्य का न तो उदय है और न ही अस्त। यह हमेशा अपने स्थान पर बना रहता है। दोनों शब्द (उदय व अस्त) महज उनकी उपस्थिति और अनुपस्थिति का अर्थ देते हैं।
उदयास्तमनाख्यं हि दर्शनादर्शनं रवेः।।
दाधर्थ पृथिवीमभितो मयूखैः।(सूर्य) अपनी किरणों द्वारा चारों तरफ से पृथ्वी को पकड़े रहता है।
मित्रो दाधार पृथिवीमुतद्याम्। मित्रः कृष्टीः।सूर्य पृथ्वी और आकाशीय क्षेत्र को बांधे रहता है। सूर्य में आकर्षण शक्ति है।
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