6 Jan 2012

अंतिम सत्य

शुरुआत वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स के इस कथन से, ‘....भौतिक विज्ञान के इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान वैसे ही हैं, जैसे किसी बालक के पास बीज गणित के क, ख, ग। आज हो यह रहा है कि बिना यह जाने कि यह क्या है, इनसे व्यवहार कर हम आविष्कार करने में सक्षम हुए हैं...।‘
आइए, इस पर विस्तार से बात करते हैं...। 18 वीं सदी के मध्य तक परमाणु अविभाज्य माना गया। बाद में परमाणु का नाभिक टूटा...। इससे प्रोटान, इलेक्ट्रान व न्यूट्रान निकले...। आगे आइंस्टीन ने बताया कि प्रकाश फोटोन नामक कणों का प्रवाह है....। इसी प्रक्रिया में 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक परमाणु के अंदर मेसोन, पायोन न्यूयॉन, हाइपरान, न्यूट्रीनो आदि करीब 200 सूक्ष्म कणों का पता चला....। यहां तक तो ठीक रहा...। लेकिन जब कणों के गुण की बात हुई तो एक बड़ी बाधा आई....। इसका ठोस समाधान आज तक नहीं हो पाया...।
आपको बताएं कि इलेक्ट्रॉन की आन्तरिक रचना जानने के लिए हमें इलेक्ट्रॉन की गति तथा दिशा जाननी होगी। उसकी दिशा जानने के लिए गामा किरण का प्रयोग होगा। पर इलेक्ट्रान, प्रकाश के फोटोन से टकराकर अपना रूप बदल देता है। जबकि गामा किरण से टकराने पर भिन्न रूप में दिखता है। वर्नर हीजनबर्ग ने इसको अनिश्चितता का सिद्धान्त कहा। इसके मुताबिक इलेक्ट्रान कोई वस्तु नहीं, इसकी अन्तरिक रचना जानना कठिन है। तब प्रश्न उठा कि इसे जानने का माध्यम क्या होगा? इसका जवाब खोजते समय ध्यान गया कि मूल तत्व कण है या तरंग, यह हम नहीं जानते। परन्तु कभी यह एक प्रवाह के रूप में व्यवहार करता है, तो कभी यह कण या तरंग के रूप में भासित होता है। इस पर कहा गया कि कण या तरंग रूप का अनुभव उस प्रक्रिया पर निर्भर है जिसका उपयोग जानने के लिए किया जाता है। यानि इनकी अनुभूति दृष्टा या आब्जर्वर व उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर निर्भर करती है...।

अब छंदोग्य उपनिषद के उद्दालक-श्वेतकेतु संवाद का जिक्र करुंगा...। प्रसंग इस तरह है...। श्वेतकेतु ने अपने पिता उद्दालक से आत्मा संबंधी एक सवाल किया...। इस पर उद्दालक ने कहा, 'एक बीज लाओ...।' जंगल से बीज लाकर श्वेतकेतु ने उनके सामने रख दिया...। पिता ने कहा, 'इस बीज को तोड़ो...।' श्वेतकेतु ने आज्ञा का अनुसरण किया। अब, उद्दालक ने श्वेतकेतु से सवाल किया, 'इसके भीतर तुम्हे क्या दिखाई दे रहा है...?' श्वेतकेतु ने ध्यान से देखा और जवाब दिया, 'कुछ नही पिताश्री !'
इस पर उद्दालक ने समझाते हुए कहा, 'देख रहे हो पुत्र, जिस विशाल, हरे-भरे घने पेड़ का जन्म जिस नन्हे से बीज से हुआ, उसके भीतर कुछ भी नही है...। जैसा तुम देखकर, स्वयं जांच कर बतला रहे हो...। इसी तरह, हमारी आत्मा, इस नन्हे बीज की तरह, परमात्मा का स्वरूप है...।'
पिता-पुत्र के इस संवाद की तुलना कीजिए आधुनिक वैज्ञानिक सफर से...। पहले पदार्थ आया...। भौतिक रुप में...। इसे तोड़ा गया...। परमाणु के स्तर पर गए...। फिर प्रोटान, न्यूटान, इलेक्टान की खोज हुई...। और आगे बढ़े तो मेसोन, पायोन न्यूयॉन, हाइपरान, न्यूट्रीनो आदि करीब 200 सूक्ष्म कणों का पता चला....।
दोस्तों, विज्ञान का सफर आज भी जारी है...। नहीं पहुंच सका है उद्दालक के आखिरी जवाब तक..., कि जो नहीं दिख रहा, वही सब-कुछ है...। परमात्मा का स्वरुप...।

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