आज चर्चा ब्रह्मांड की पैदाइश पर। इस पर अनेक मत आए। आखिरकार आज विज्ञान में यहां तक सहमति है कि शुरुआत में एक जगह पर सघन द्रव्यमान था। कुछ वजहों से इसके अंदर विस्फोट हुआ। इससे निकल अंसख्य टुकड़े इधर-उधर फैल गए। फिर अपनी धुरी पर लट्टू की तरह घूमने के साथ इन टुकड़ों में एक-दूसरे से दूर जाने की घुड़दौड़ शुरु हो गई। घुड़दौड़ आज भी जारी है....।
विज्ञान की यह ध्वनि हमारे दर्शन में सुनी जा सकती है। आज नहीं, सदियों पहले ही...। इसके अनुसार शुरुआत में एक ही तत्व परमात्मा पिंड रुप में था...। उसमें एकोहं बहुस्यामि (मैं एक हूं बहुत हो जाउं) का विचार आया। इससे वह फट पड़ा और महाप्रकृति की रचना कर डाली। इसमें सत, रज, तम तीन गुण थे। इन्हीं से सृष्टि का निर्माण हुआ। सृष्टि के विस्तार की तरह ही 84 लाख योनियों का निरंतर विस्तार होता चला गया...। विकास की प्रक्रिया यहां भी जारी है...।
विज्ञान की यह ध्वनि हमारे दर्शन में सुनी जा सकती है। आज नहीं, सदियों पहले ही...। इसके अनुसार शुरुआत में एक ही तत्व परमात्मा पिंड रुप में था...। उसमें एकोहं बहुस्यामि (मैं एक हूं बहुत हो जाउं) का विचार आया। इससे वह फट पड़ा और महाप्रकृति की रचना कर डाली। इसमें सत, रज, तम तीन गुण थे। इन्हीं से सृष्टि का निर्माण हुआ। सृष्टि के विस्तार की तरह ही 84 लाख योनियों का निरंतर विस्तार होता चला गया...। विकास की प्रक्रिया यहां भी जारी है...।
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