24 Jan 2012

ओमनीजेक्टिव व त्रिपुटी

आज शुरुआत Eugene Wigner से...। अमूमन ब्रह्मांड को दृश्य व बुद्धि को दृष्टा माना जाता रहा है। लेकिन इनके मुताबिक कणों व उपकणों की प्रकृति तब-तक नहीं जानी जा सकती, जब तक उसका संपर्क चेतना से नहीं होता...। यानि बगैर चेतना के संपर्क के कणों व उपकणों से निर्मित ब्रह्मांड जड़ है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यदि कण चेतन युक्त है तो पूरा ब्रह्मांड चैतन्य होगा। एक तरह से दृष्टा।
अब Michael Talbot की पुस्तक Philosophy Of Modern Physics का संदर्भ देखिए...। इसके मुताबिक 'हाइजेनवर्ग के सिद्धांत के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि ब्रह्मांड महज दृश्य है। एक ही समय में यह दृश्य भी है और दृष्टा भी।' इन्होंने एक नए शब्द 'ओमनीजेक्टिव' का प्रयोग किया। इसमें दृश्य और दृष्टा दोनों का अर्थ समाहित है।
आखिर में बात अद्वैत वेदांत की...। इस संबंध में यहां तीन पहलुओं पर चर्चा है। दृश्य-दृष्टा-दृक अर्थात ज्ञेय, ज्ञान व ज्ञाता। इन्हें त्रिपुटी कहा गया है। जैसे ही सत्य का अहसास होता है, दृश्य और दृष्टा दृक में विलीन में हो जाते हैं। इनमें कोई भेद नहीं रह जाता। यहां यह साफ कर दूं कि इसे समझना आसान नहीं। इस पर अलग से चर्चा होगी। यहां हमारा मकसद ओमनीजेक्टिव व त्रिपुटी सिद्धांत में समता दिखना है। एक आधुनिक विज्ञान की देन है, जबकि दूसरा अद्धैत वेदांत का।

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