हमारी संस्कृति आत्म और अन्य में भेद नहीं करती। हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पेड़-पौधों के साथ विष्व का हर कण चेतन है, जीवन है सबमें। यहां कुछ भी मृत नहीं। हां, नंगी आखों से ऐसा नहीं दिखता तो इसलिए कि सभी कर्मानुसार चेतन की अलग-अलग अवस्थाओं में पड़े हैं। प्रारब्ध सबके साथ जुड़ा है। भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने सिद्ध भी किया कि वनस्पतियों के अंदर प्राण चेतना है। धार्मिक परिवेश में पले-बढ़े इस भारतीय वैज्ञानिक का प्रकृति से गहरा लगाव था। बचपन से इनकी मां कहती थी रात को पेड़-पौधों को मत सताओ, वह भी सोते हैं। मां की यह सीख इनके जेहन में घर कर गई। बाद में आपने रेडियो तरंगों का पता लगाने के लिए "कोहरर" नामक यंत्र बनाया। इसके आधार पर इन्होंने पेड़-पौधों के अध्ययन के दूसरा यंत्र बनाया और भारतीय परंपराओं में छिपे विज्ञान को उजागर किया।
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